हिंदुस्तान में सलाह लेने से दिवालिया होते हैं - Dealers Care

Breaking

BANNER 728X90

Thursday, 19 November 2020

हिंदुस्तान में सलाह लेने से दिवालिया होते हैं

किसी भी व्यक्ति के आगे बढ़ने या पीछे जाने के पीछे मतलब वह उन्नति कर रहा है या वह बर्बाद हो रहा है यह सब तय करने के लिए बड़े बुजुर्ग और बुद्धिजीवी कहते हैं कि आदमी की संगत कैसी होगी वह वैसा ही बनेगा अब यह संगत कहां से आएगी संगत का तात्पर्य तो यही है कि जो आपके आसपास लोग रहते हैं वही आपके संगत है अब जब हम हिंदुस्तान की वर्तमान दशा और दिशा की बात करेंगे तो यहां एक तो पूंजी वाले लोग हैं अमीर लोग हैं और फिर बच्चे कुछ गरीब है मध्यमवर्गीय में लगभग नहीं आते ऐसा मैं मानता हूं क्योंकि मध्यमवर्गीय वर्ग केवल सरकारी आय के हिसाब से ही है लेकिन जो किसी से भी डरे जिसे कोई भी डरा सके और जो हमेशा अपने और अपने परिवार का पेट पालता हो सरकारों से मध्यमवर्गीय कह सकती है लेकिन मेरे हिसाब से वह गरीब ही होगा अर्थात देश में यही 2 वर्ग है अब कई बार मैंने विचार किया की हमें उन्नति करना है या हमें राजनीति को दिशा देनी है या हमें आवाम के लिए कुछ काम करना है तो मैंने कोशिश की अपनी विचारधारा के साथ किसी से बात भी की जाए ताकि हम आंकलन कर सकें जो हम सोच रहे हैं वह सही है या नहीं लेकिन यह सब कुछ करने पर मैंने पाया कि जिसके साथ भी पेट के आंकलन करने की सोचते हैं वह सभी दिमाग की रुप से दिवालिया हैं वह या तो सरकार के साथ हैं यह सरकार के खिलाफ है वह या तो अमीरों के साथ है या अमीरों के खिलाफ है मतलब बीच का मध्य विचारधारा उनके पास कुछ भी नहीं अब ऐसे में यदि आप कोई एक बड़ा राजनीतिक सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग यदि आपके आसपास होंगे तो भी आपको कोई सलाह नहीं दे सकते ऐसे में  अपने इस ब्लॉग में सिर्फ यही कह सकता हूं कि यदि आपको सलाह लेनी है तो सिर्फ और सिर्फ अच्छी किताबों से ले देश-विदेश में घटी हुई घटनाओं से सबक लें साथ ही यह तय कर लें कि यदि आपको मंजिल से भटकना है तो यहां के बुद्धिजीवियों से बात की जा सकती है और यदि आप के अध्ययन से आपके ज्ञान से आपके सामने कोई तस्वीर स्पष्ट है तो बिना किसी की सलाह लिए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाना चाहिए अन्यथा हम कब अपने लक्ष्य से भटक कर इन लोगों का कहना मानने लग जाएंगे कुछ नहीं कह सकते इसलिए संगत करनी हो तो इंसानों की नहीं किताबों की करनी चाहिए और किताबें भी किसी मस्तराम की लिखी हुई ना हो बल्कि बहुत ही बुद्धिजीवियों की द्वारा लिखी गई हो धन्यवाद शेष इसके बाद

No comments:

Post a Comment

loading...